बुधवार, 29 दिसंबर 2010

zindgi

जिंदगी क्या है कभी धुप तो कभी छांव /
मेरी जिंदगी जो कभी उस की छाव मे एक शिशु की तरह सुरक्षित लगती थी /वो ही जिंदगी आज मेरे लिए सब कोई होते हुए भी एक भयानक लगती है /मे जिन्दगी जीती हम पर केवेल बच्चों के लिए पर जब भी बच्चों के सेटल ; होकर अलग होने की सोचती हम
तो दिल कंप उठता है /पर क्या मे उन्हें रोकना चाहूंगी ? नहीं कभी नहीं /मे तो कभी उन्हें अपना दर्द तक नही दिखाती हं/वो तो ये ही जानते है की हमारी माँ बहुत हिम्मत वाली है /और यही विश्वास से मेरे साथी भी मुझे ऐसे छोड़ कर गया ऐसा मे कई बार सोचती ह्म /नहीं तो वो हमे इतबा प्यार करते थे की अगर उन्हें मुझ पर विश्वास न होता तो वो यमराज से भी लड़ कर हमारे पास सुरक्षित आते
बस उनकी यात्रा यही तक थी और अब उनके अधूरे काम मुझे पुरे करने है हिम्मत से यही सोचती ह्म /बस डर लगता है तो बस अपने अकेलेपन से
जहाँ शादी के बाद स्त्री को पति का साथ मिलता है विश्वास मिलता है वो ही स्त्री की जिंदगी हो जाती है पर पति के जाने के बाद बेमाने सी लगती है जिंदगी /ये बात मे मान्यताओं की नहीं कह रही ह्म
दिल की बात कह रही